कल का काम आज ही कर लो समय नही है दास किसी का।
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अज़ान मेरे जीवन की हकीकत और सच्चाई है। आगाज़ है। प्रारंभ है। संगीत है। लय है। गति है और युग्म है। जीवन जीने का नाम है। महादेवी वर्मा के शब्दों में कहें तो--- संघर्ष क्षेत्र है विश्व यहां सिसकी भरना पागलपन है चुपचाप हलाहल पी जाना फिर मुस्करा देना जीवन है
2 टिप्पणियां:
बेहतरीन आपने दो पक्तियों में समय बांध लिया।
और हम कहते है..................
जो फिसल पड़ी है हाथो से
वो उम्र रही
मैं खड़ा हूँ वही पर अभी तक
इरशाद
प्रभाष जोशी नहीं रहे, यह केवल खबर नहीं है। उनका अवसान पत्रकारिता औरसाहित्य दोनों के लिए ही क्षति है। प्रभाष जोशी को जनसत्ता में पढ़ते औरसमारोह में सुनते हुए बहुत कुछ सीखने और समझने का अवसर मिला। छोटे छोटेवाक्य, शब्दों का अनूठा प्रयोग और लाजवाब कथ्य-शिल्प प्रभाष जोशी की हीदेन कही जा सकती है। अस्सी के दशक से पहले पत्रकारिता में वाक्य बड़े औरभाषा क्लिष्ट रखी जाती थी। लेकिन प्रभाष जोशी ने आम बोलचाल की भाषा कोअपनाया। उनका सीधा सा संदेश था कि पाठक जिस भाषा को समझता और बोलता है,वही पत्रकारों की भी भाषा होनी चाहिए। शायद यही कारण है कि यह प्रयोगउन्होंने क्रिकेट से प्रारंभ किया। अजहरुद्दीन की लगातार तीन सेंचुरी परउनकी कलम से लिखा गया-अजहर तेरा नाम रहेगा। कपिल देव जब उत्कर्ष पर थे,तो उनको प्रभाष जोशी ने अपने स्वर्ण-शब्द दिए। लेकिन जब कपिल देव अपनीबालों से कहर नहीं बरपा रहे थे और एक भी विकेट नहीं ले पा रहे थे तोप्रभाष जोशी ने उनको टीम से बाहर करने की भी पैरवी की। उन्होंने कहा किअपना अग्रणी बालर और कप्तान क्या पुछल्लों के ही विकेट लेता रहेगा।उल्लेखनीय है कि उस वक्त तक निचले क्रम के बल्लेबाजों के लिए पुछल्लेशब्द का प्रयोग नहीं होता था। प्रभाष जोशी ने यह नया नाम दिया। ब्लू स्टार आपरेशन के समय तो राजेंद्र माथुर (संपादक नवभारत टाइम्स) औरप्रभाष जोशी में संपादकीय द्वंद्व हुआ। एसा द्वंद्व इसके बाद देखने कोनहीं मिला। प्रेशर कुकर और चश्मे को प्रतीक मानकर दोनों संपादकीय में एकदूसरे के सवालों का जवाब देते रहे। मसलन, प्रभाष जोशी ने लिखा कि कुकरसीटी-पर-सीटी दे रहा है तो उससे फटने में देर नहीं लगेगी। राजेंद्र माथुरने लिखा-हर चीज की एक ताप होती है। प्रेशर कुकर में पकने वाली चीज की तापतय होती है। फटने का मौका ही क्यों दें। हर चीज तो प्रेशर कुकर में नहींपक सकती। इसके बाद चश्मे पर वह केंद्रित हो गए। कुल मिलाकर उस वक्तसंपादकीय में जो गुणवत्ता और विचारों का आदान-प्रदान देखने को मिला, वैसाअब कहां। पत्र कालम मे बहस करायी जाती थी। हमको याद है कि मेरठ में एकसिनेमाघर के क्लर्क ने प्रभाष जोशी के लेख पर टिप्पणी की--इंदिरा गांधीकी हत्या पर समस्त सिख समाज को शक के दायरे में ला दिया गया है। उनको शककी नजर से देखा जा रहा है। क्या यह उचित है। नाथूराम गोडसे ने महात्मागांधी की हत्या की थी, फिर क्या हिंदू समाज शक के दायरे में नहीं आनाचाहिए। इस पत्र पर प्रभाष जोशी ने संपादकीय पृष्ठ पर लंबा लेख लिखा। उसवक्त हम लोगों का अखिल भारतीय पत्र लेखक मंच हुआ करता था। हमने पत्रलिखे-प्रभाष जी, यह तो कोई बात नहीं हुई। आपको भी चौपाल (पत्र स्तंभ) मेंआकर उतनी शब्द-सीमा में जवाब देना चाहिए, जितना उस लेखक को आपने स्थानदिया। आखिरकार, प्रभाष जोशी चौपाल में आए और पत्र का जवाब दिया। जितनीपंक्तियां उस पत्र लेखक की छापी गई थी, उतनी ही प्रभाष जी ने लिखी। यहबात अलग है कि उसके बाद हमारा अखिल भारतीय पत्र लेखक मंच काली सूची मेंडाल दिया गया। यह प्रभाष जोशी की सहजता और पाठकों की बात की स्वीकार्यताही थी। एसे लोग विरले ही होते हैं जो आलोचना को भी सहजता से लेते हैं।एक और संस्मरण याद आता है। इंदिरा गांधी के देहावसान के समय प्रभाष जोशीजी ने अपने लेख में नमनांजलि शब्द का प्रयोग किया। उधेड़बुन में लगनेवाले हम जैसे पत्र लेखकों ने प्रभाष जोशी जी को लिखा-यह शब्द का प्रयोगगलत है। नमन करोगे तो अंजलि कहां से बन जाएगी। प्रभाष जोशी ने इस शब्द कोवापस ले लिया। लेकिन भाषा को सर्वग्रह्य बनाने मे प्रभाष जोशी जी का कोईजवाब नहीं दिया। जब भी लिखा, बेबाक लिखा-चाहे वह इंदिरा गांधी हों यावीपी सिंह या नरसिम्हाराव। राजीव गांधी के दो शब्दों हमे देखना है और हमदेखेंगे का उन्होंने शाब्दिक चित्रण किया और राजीव को भविष्य का भारतकहा। आज, राहुल गांधी को देखकर लगता है, यह बात तो प्रभाष जोशी ने काफीपहले लिख दी थी। लेखन और वो भी क्रिकेटीय लेखन के तो वह मास्टर थे ही,हैडिंग्स के भी वह मास्टर थे। चुटीले और सीधी मार करने वाले हैडिंग्सदेने में उनका कोई सानी नहीं था। बेबाक, बेखौफ और बेलाग लिखने वालेप्रभाष जोशी चूंकि क्रिकेट में काफी मजबूत पकड़ रखते थे, इसलिए राजेंद्रमाथुर जी को शरद जोशी का सहारा लेना पड़ा था। व्यंग्यकार शरद जोशी केक्रिकेटीय व्यंग्य बेजोड़ होते थे।विश्वास नही हो रहा कि प्रभाष जोशी जी चले गए। भारत-आस्ट्रेलिया मैचदेखते हुए उनको दिल का दौरा पड़ा होगा। शायद, अंतिम ओवर का रोमांच प्रभाषजी को ले बैठा हो या सचिन की पारी देखते हुए उनको लंदन के सुनील गावस्करयाद आ गए हों। क्या कहा जा सकता है। प्रभाष जोशी जी आपको प्रणाम। आप बहुतयाद आओगे।
सूर्यकांत द्विवेदी
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